जीतन राम मांझी: मजदूर से मंत्री तक का सफर
बिहर के मंत्री ने बाल मजदूरी से जीवन की शुरुआत की फिर क्लर्की करते करते मंत्री बने.उन्होंने कई अनछुए पहलुओं को साझा किया.आप भी जानिए.
पिछले दिनों मांझी अपने दिल्ली दौरे के दौराननेशनल कॉन्फ़ेड्रेशन ऑफ़ दलित आर्गेनाइजेशंस( नैकडरो) के मुख्यालय पहुंचे. जहां उन्होंने नैकडोर के चेयरमैन अशोक भारती और उनकी टीम के साथ कुछ मुद्द्दों पर चर्चा की. उन्होंने कुपोषण पर प्रस्तुत ताजा रिपोर्ट ‘न्यूट्रिशन क्राइसिस इन इंडिया’ पर भी परिचर्चा की. साथ ही पोस्ट 2015 डेवलपमेंट एजेंडा पर भी अपने विचार साझा किये. नैकडोर की अगुआई में किये जाने वाले कार्यों की सराहना करते हुए उन्होंने आश्वासन दिया कि वे मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की सहमति से नैकडोर के साथ मिलकर दलित समुदाय एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के कल्याण पर मिलकर काम करेंगे.
इस अवसर पर पत्रकार ऋशाली यादव ने जीतम राम मांझी के साथ विस्तार से बातचीत की. पेश हैं इस बातचीत के कुछ विशेष अंश.
अपने बारे में कुछ बतायें, राजनीती में कैसे आना हुआ?
मेरा जन्म बिहार के गया जिले में मजदूर परिवार में 6 अक्टूबर 1944 में हुआ. जन्म स्थान तो हतियामा था पर लालन- पालन महाकार में हुआ. हमारे समय में पढाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, तो मेरे पिता,जो खेतिहर मजदूर थे, ने मुझे जमीन मालिक के यहाँ काम पे लगा दिया. वहां मालिक के बच्चों के मास्टर के प्रोत्साहन एवं पिता जी के सहयोग से सामाजिक विरोध के बावजूद मैंने अपनी पढाई आरम्भ की. सातवी कक्षा तक की पढाई बिना स्कूल गए पूरी की .
उसके बाद मैं हाई स्कूल गया और सन 1962 में मैट्रिक सेकेंड डिविज़न से पास किया.1966 में गया कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की . परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए आगे की पढाई रोक कर मैंने क्लर्क की नौकरी शुरू कर दी और 1980 तक वहा काम किया . राजनीत से मैं हमेशा जुड़ना चाहता था इसलिए 2 फरवरी 1980 को रिजाइन करने के बाद मैं राजनीती से जुड़ गया और आज तक जुड़ा हूँ .
बिहार सरकार द्वारा दलितों के लिए किये गये प्रयासों को आप किस प्रकार आंकते हैं ?
निश्चित ही बिहार प्रगति के दिशा में है. मनानीय मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में दलित समाज में बहुत ही विकास हुआ हैं. अगर हम 2005 की बात करें तो अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए बिहार सरकार का बजट 48 से 50 करोड़ का होता था , जो कि अब 2013 में 1200 करोड़ का हो गया है . पहले स्पेशल कॉम्पोनेन्ट प्लान का कोई विकल्प सरकार नहीं रखती थी. हमारी सरकार ने उस स्कीम की राशि को प्लानिंग कममिशन के नॉर्म्स पर आधारित कर दिया.2005 में जितना सम्पूर्ण बिहार का बजट हुआ करता था आज वो सिर्फ दलित समुदाय के लिए होता है. मुझे लगता है सरकार के काम को आंकने के लिए लिए मेरा इतना कहना काफी है.
हाल ही में लक्ष्मणपुर बाथ जनसंहार के जजमेंट में कोर्ट ने अपराधियों को बरी कर दिया , इस पर आपका क्या दृष्टोकोंन है? सरकार इसके प्रति आगे क्या रुख लेगी ?
यह हमारे समाज के लिए निश्चित ही एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. हमने हाई कोर्ट के जजमेंट को पुनविर्चार करने की अपील सुप्रीम कोर्ट में की है . और कुछ स्पेशल वकील भी निर्धारित किये गए हैं कर्वाय्ही करने के लिए. हमने पहले भी पूरी मुस्तैदी के साथ लड़ाई लड़ी है और आगे भी लड़ते रहेंगे.
आगे आने वाले 5-7 सालों की अगर बात करें तो आप दलित समाज और महिलाओं के विकास को कहा देखते है ?
सरकार चाहे कोई भी हो, मुख्य बात यह है कि उनके काम का लाभ हर व्यक्ति तक पहुंच सके और समाज की उन्नति हो. बिहार निश्चित ही एक मॉडल स्टेट के रूप में उभरा है . महिलाओं के अवेयरनेस एवं सशक्तिकरण के लिए बहुत से कदम उठाये गए हैं – जैसे पंचायतों में महिलओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण , छात्राओं की शिक्षा के लिए साइकिल योजना जिससे उनकी शिक्षा की सीमा सीमित न होने पाए. मैं आने वाले कुछ सालो में देश और समाज की उन्नति में महिलाओं और दलितों को उभरते हुए देखता हूँ .
आज की पीढ़ी को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
आज के युवाओ को मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि वे केवल आपने बारे में या सिर्फ आपनी उन्नति के बारे में न सोचें बल्कि समाज के ओवरआल डेवलपमेंट को ध्यान में रख कर आगे बढें. हमारे समाज में आज भी साक्षरता , जागरूकता एवं ज्ञान की कमी है. जिसके लिए हमारी सरकार चिंतित है और हम ये मानते हैं कि इसके लिए कई ठोस कदम उठाने की जरुरत है. हमारे समाज का विकास युवाओं के हाथों ही संभव है इसलिए इसमें उनकी ही महत्वपूर्ण भूमिका है. इसिलिए मैं उनसे यही उम्मीद रखता हूँ कि वे समाज की उननती के लिए आपना हाथ बढ़ायें.
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